गनलङ

                 (कारक)

मेता च नङमेता रअ: नाता उद्म लो:ते उदुब् तन टुङको “गनलङ” कजिओ:तना ।

(संज्ञा या सर्वनाम के साथ क्रिया का सम्‍बन्‍ध सूचित करने वाले शब्‍दों को “कारक” कहते हैं ।)

 

         गनलङ रेअ: हनटिङ

         (कारक के भेद)

होड़ो जगर रे गनलङ इरल तअ: रे हटिङकना :-

1.  मूद् गनलङ (कर्त्ता कारक)

2.  रिनिका गनलङ (कर्म कारक)

3.  सनब् गनलङ (करण कारक)

4.  लङ गनलङ (सम्‍प्रदान कारक)

5.  नाता गनलङ (सम्‍बन्‍ध कारक)

6.  आड़ा गनलङ (अधिकरण कारक)

7.  केनेड़ा गनलङ (सम्‍बोधन कारक)

8.  अपद् गनलङ (अपादान कारक)


 1.  मूद् गनलङ (कर्त्ता कारक) :- बकंड़ा रे उद्मनि: (कर्त्ता) उदुब्तन टुङ “मूद् गनलङ” कजिओ:तना । मूद् गनलङ रअ: चिना “ए” तनअ: ।

(वाक्‍य में कर्त्ता को सूचित करने वाले शब्‍द को “कर्त्ता कारक” कहते हैं । कर्त्ता कारक की विभक्ति चिन्ह “ए” है। )

चिल्‍का (जैसे) :-

              सदोमए निराकदा।

             (घोड़ा दौड़ा रहा है।)

ने बकंड़ा रे सदोम “उद्मनि:” ओड़ो निर “उदम” तनअ:। नेतअ: रे उदमनि:उदुब् तन टुङ चिना “ए” तनअ:।

(इस वाक्‍य में “घोड़ा” कर्त्ता और “निर” क्रिया है इसका बोध करने वाला शब्‍द “ए” है।)


2.  रिनिका गनलङ (कर्म कारक) :-  बकंड़ा रे उदम रेअ: असर उदुब्तन टुङ रिनिका गनलङ कजिओ:तना। रिनिका गनलङ रअ: चिना “को” तनअ:।

 (वाक्‍य में क्रिया का फल जिस पर पड़ता है, उसे कर्म और उसके बोधक शब्‍द को कर्म कारक कहते हैं, इसकी विभक्ति चिन्‍ह “को” है।)

चिल्‍का (जैसे) :-

           मनिको को लेनेआ।

          (सरसों को पेरते है।)

ने बकंड़ा रे मनि “रिनिका” तनअ: ओड़ो: “लेन” उदम। “लेन” रेअ: असर मनि रेगे टोगो: तना ओड़ो नेअ उदुबतन टुङ “को” तनअ:।

(इस वाक्‍या में “मनि” कर्म और “लेन” क्रिया है। क्रिया का असर “मनि” पर पड़ रहा है। इसका बोधक शब्‍द “को” है)

 

3.  सनब् गनलङ (करण कारक) :- उद्म रअ: सनब् उदुब्तन टुङ सनब् गनलङ कजिओ: तना। सनब् गनलङ रअ: चिना “ते” तनअ:।

(क्रिया के साधन को बताने वाला शब्‍द “करण कारक” कहलाता है। इसकी विभक्ति चिन्‍ह “ते” है।)

चिल्‍का (जैसे) :-

            ती ते मंडि को जोमेअ।

           (हाथ से भात खाते हैं)

नेतअ: रे उदम रेअ: सनब् “ती” तनअ: ओड़ो: “जोम” उदम। नेअ रअ: मुंडि उदुब्तन टुङ “ते” तनअ:।

(यहाँ पर क्रिया का साधन “ती” और “जोम” क्रिया है। और इसका बोधक शब्‍द “ते” है।)

 

4.  लङ गनलङ (सम्‍प्रदान कारक) :- ओकोए नङ जांन कमि रिकाओ: तना, ओड़ो: एना रअ: मुंडि ओको टुङ ते नमो: तना, एनागे नङ गनलङ कजिओ: तना। नङ गनलङ रअ: चिना “नङ/नगेन” ओड़ो: “नतिन” तनअ:।

(जिसके लिए कोई कार्य सम्‍पादित किया जाता है और इसका बोध जिस शब्‍द होता है, उसे सम्‍प्रदान कारक कहते है। इसकी विभक्ति चिन्‍ह “नङ/नगेन” और “नतिन” है।)

चिल्‍का (जैसे):-

            होनको नङ जोमेअ:ए इदिजदा।

           (वह बच्‍चों के लिए मिठ्टाइयाँ ले जा रहा है।)

नेतअ: रे कमि होनको मेन्ते रिकाओ: तना, ओड़ो: एना‍ रअ: मुंडि “लङ” टुंङ ते नमो: तना।

(यहाँ पर कार्य बच्‍चों के लिए सम्‍पादित हो रहा है और इसका बोध क शब्‍द “नङ” है।)

 

5.  अपद् गनलङ (अपादान कारक) :- मेता रअ: बिनगन उदम अपद् ओड़ो: एना रअ: मुंडि ओको टुङ ते नमो: तना, एना अपद् गनलङ कजिओ: तना। अपद् गनलङ रअ: चिना “ते” ओड़ो: “आते” तनअ:।

(संज्ञा का एक दूसरे से अलग होने की क्रिया को अपादान और जिस शब्‍द से इसका बोध होता है, उसे अपादान कारक कहते हैं। अपादान कारक की विभक्ति चिन्‍ह “ते” और “आते” है।)

चिल्‍का (जैसे) :-

             दारू आते सकम उयु: तना।

             (पेड़ से पत्ता गिर रहा है)

ने बकंड़ा रे “दारू” ओड़ो: “सकम” मेताकिङ तनअ: ओड़ो: “उयु:” बिनगन उदम। नेअ रअ: मुंडि उदुब् तन टुङ “आते” तनअ:।

(इस वाक्‍य में “दारू” और “सकम” संज्ञा है। “उयु:” अलग होने की क्रिया है। इसका बोधक शब्‍द “आते” है।)

 

6.  आड़ा गलनङ (अधिकरण कारक) :- उदम रेअ: आड़ा गे, आड़ा गलनङ कजिओ: तना। नेअ रअ: चिना “रे” तनअ:।

(क्रिया का आधार ही अधिकरण कारक कहलाता है, इसकी विभक्ति चिन्‍ह “रे” है।)

चिल्‍का (जैसे) :-

            पटि रेए दुबाकना।

           (वह चट्टाई पर बैठा है।)

ने बकंड़ा रे “दुब्” उदम ओड़ो: आड़ा “पटि” तनअ:। नेअ रअ: मुंडि “रे” टुङ ते नमो: तना।

(इस वाक्‍य में “दुब” क्रिया और आधार “पटि” है, इसका बाध “रे” शब्‍द से मिलता है।)

 

7.  नाता गनलङ (सम्‍बन्‍ध कारक) :- मेता रेअ: नाता उदुब् तन टुङको नाता गनलङ कजिओ: तना। नेअ रअ: चिना “अ:/रअ:/रेन” तनअ:।

(संज्ञा के सम्‍बन्‍ध का बोध कराने वाले शब्‍दों को सम्‍बन्‍ध कारक कहते हैं। इसकी विभक्ति चिन्‍ह “अ:/रअ:/रेन” है।)

चिल्‍का (जैसे) :-

            राजाअ: बंगला।

           (राजा का बंगला।)

           ओड़अ: रअ: चउलि।

           (घर का चावल।)

           रातू रेन राजा।

           (रातू का राजा।)

चेतन रेअ: बकंड़ाको रे राजा, बंगला, चउलि, रातू ओड़ो: राजा सोबेन मेता को तनअ:। ने बकंड़ाको रे मेता को रअ: नाता अदुब् तन टुङ “अ:/रअ:/रेन” तनअ:।

(ऊपर के वाक्‍यों में “राजा, बंगला, ओड़अ:, चउलि, रातू और राजा संज्ञाएँ हैं। इन वाक्‍यों में सम्‍बन्‍ध का बोधक “अ:/रअ:/रेन” है।)

 

8   .केनेड़ा गनलङ (सम्‍बोधन कारक) :- मेता रेअ: ओको मुटन ते रनअ: च केनेड़ा रअ: मुंडि नमो: तना, एनागे केनेड़ा गनलङ कजिओ: तना। नेअ रअ: जेतन मियद् गे चिना बनो:अ।

     (संज्ञा के जिस रूप से किसी को पुकारने या सम्‍बोधित करने का भाव सूचित होता है। उसे सम्‍बोधन कारक कहते हैं। इसकी कोई एक निश्चित विभक्ति चिन्‍ह नहीं है।)

चिल्‍का (जैसे) :-

१.    मिद् जु‍ड़ि‍ कोड़ोको केनेड़ो रे “हो” ओड़ो: “हले” को मेनेअ।

चिल्‍का- अम हले ! दोलङ होनोर ते।

२.    मिद् जु‍ड़ि‍ कुड़िको “बइ”, “गो” ओड़ो: “गले” को मेनेअ।

चिल्‍का- अम बइ ! दोलङ सुसुन ते।

३.    अपनाते हुपुड़िङ सेपेड़ेद्को “अम”, “अमा” ओड़ो: “अबुआ” को मेताकोअ।

चिल्‍का- अमा सोमा ! मर बिरिद्में।

४.    अपनाते हुपु‍ड़िङ हमपानुमको “अमगे” ओड़ो: “अपना” ओड़ो: “अमना मइ” को मेता कोअ।

चिल्‍का- अमगे पालो ! जू ओड़अ: तेम।

५.    अपनाते हुपु‍ड़िङ कोड़ा होन ओड़ो: कुड़ि होनको “अम रे”, “बाबुरे” आद् “मइरे” को मेताकोअ।

चिल्‍का- अमरे ! दअ: रे अलोम इनुङअ।

६.    एयङ अबाद् को मेन्ते केनेड़ा रे “गा” कजिओ: तना।

चिल्‍का- एयङ गा ! दुब्को:में।

७.    मपरङ होड़ोको नगेन “ए” ओड़ो: “ओ” कजिओ: तना।

चिल्‍का- ए गोमके ! कमि ओमा लेम।

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